आमतौर पर अगर किसी प्रसिद्द व्यक्ति के बारे में आलोचना की जाती है तो समाज आपके पीछे पड़ जाता है। लेकिन यह हर एक ज़िम्मेदार व्यक्ति और नागरिक का कर्तव्य है कि यदि कोई बड़ी हस्ती चाहे वो कितनी भी प्रभावशाली क्यों न हो अगर उसकी तरफ से कुछ गलती या अन्याय हुआ हो तो उसका पुरजोर विरोध और आलोचना होनी चाहिए। केवल उपलब्धियों का गुणगान करके और कुकर्मो को छुपाकर कब तक न्याय संगत होगा। हालाँकि ऐसे प्रभावशाली व्यक्तियों की आलोचना करना मतलब जलते अंगारों के ढेर में अपना हाथ डालना है। क्योंकि सभी को अच्छा अच्छा सुनना है और उस व्यक्ति की गुड बुक्स में रहना है फिर चाहे इसके लिए अपना आत्मसम्मान क्यों न बेचना पड़े या फिर अपने आदर्शों से समझौता करना पड़े। ट्रेंड के साथ चलना बड़ा आसान है क्योंकि भेड़चाल चलने वालों को ये मुगालता रहता है कि उनका भी बेडा पार हो जाएगा। मगर उन्हें ये नहीं पता कि समझौता करते करते और अपने ज़मीरी को बेचते बेचते उनके अंदर का किरदार कब से मर चुका है, संवेदनाओं की जगह अब मगरमच्छ की आंसुओं ने और झूठी सांत्वना ने ले ली है। किसी की तारीफ इसलिए नहीं की जाती आजकल कि वो वास्तव में प्रतिभशाली है, उसको इसलिए सर माथे चढ़ाते हैं कि उस कथित सम्मानित व्यक्ति की वजह से समाज में हमें भी पहचान मिलेगी लोग हमारी तरफ भी देखंगे। खैर अब आते हैं वास्तविक मुद्दे पर।
विनेश फोगाट को ओलिंपिक में 100 ग्राम वजन अधिक कारण भारत को एक मैडल से वंचित होना पडा। मुझे तो हैरानी होती है कि भारत का विपक्ष तो पहले से ही विनेश फोगाट के ज़रिये अपनी ओछी राजनीती और प्रॉपगैंडा को फैला रहा है , लेकिन अब सरकार भी विनेश के आगे नतमस्तक हो गयी है। बहुत से लोगों को ये नहीं पता कि विनेश फोगाट भारत में ओलिंपिक क्वालीफाइंग 53 किलोग्राम वर्ग में एक नई कुश्ती की खिलाडी अंजू से 10 -0 स्कोर से पराजित हो गयी लेकिन फिर भी अपने दबदबे के कारण उन्होंने भारतीय ओलिंपिक चयन समिति के अधिकारीयों पर दबाव बनाया और 50 किलोग्राम वर्ग में अपने से कम अनुभवी खिलाडियों को हराकर क्वालीफाई किया और बैकडोर से एंट्री की. उन्हें भारत सरकार और खेल मंत्रालय के द्वारा पूरी सुविधा दी गयी जिसमे उनकी मांगो के अनुसार:-
ओलिंपिक तैयारी के लिए पसंदीदा कोच, फिजियो मिले और उनके पति उनके साथ रहे इस पूरी ट्रेनिंग के दौरान और ओलिंपिक में भी। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या यह अंजू पहलवान या 50 किलोग्राम वर्ग की नयी पहलवान खिलाडियों के साथ अन्याय नहीं है? क्या यही नियम और अन्य किसी पहलवान के लिए भी लागू होगा?
भारत में लोगों की यादाश्त बहुत कमज़ोर है, ये वही विनेश फोगाट है जो अपने जीते हुए मैडल जिनके कारण इनको देश ने पूरा सम्मान मिला, उसको सड़क पर छोड़ने और गंगा में बहाने की बात करते थे। मुझे समझ नहीं आता कि ओलिंपिक से बाहर उनको पेरिस ओलिंपिक खेल समिति ने किया है और दोष भारत की सरकार पर लगाया गया है। इस देश में विपक्ष हमने बहुत देखे मगर इतना निर्लज्ज, सेलेक्टिव, हिंसक, अवसरवादी, स्वार्थी और देश विरोधी विपक्ष कहीं नहीं देखा।
असल में बात यह है कि हर कोई विनेश की प्रशंसा करने के लिए विवश है क्योंकि इस वक़्त वो मीडिया और विपक्ष की लाड़ली हैं और प्रसिद्ध भी है, यदि कोई उनकी निंदा या आलोचना करेगा तो उसको शायद देशद्रोही करार दिया जाए। मगर हम नेताओं की तरह गोलमोल बातें नहीं करते है।
ये पहला मामला नहीं है जब विनेश ओलिंपिक में कुश्ती से वजन के कारण बाहर हुई , इस से पहले रियो ओलिंपिक 2016 मे भी अपने ज़्यादा वजन के कारण अयोग्य घोषित हुई थी तो उस समय तो कोई हंगामा नहीं हुआ। सुशील कुमार भी 2019 के ओलिंपिक में अयोग्य घोषित हुए थे तब तो किसी को कोई षड़यंत्र नज़र नहीं आया। भारत सरकार ने 70 लाख के तकरीबन इस खिलाडी की ट्रेनिंग और सुविधा पर खर्च किया , लेकिन फिर भी कुछ नासमझ नेताओं को इसमें भारत सरकार की साजिश नज़र आती है। पता नहीं इन लोगों की बुद्धि पर ताले पड़ गए हैं शायद। प्रधानमंत्री मोदी के विरोध के लिए किसी भी हद को पार करने की विपक्ष की कुत्सित मानसिकता उन्हें देश के विरोध करने से भी नहीं हिचकती।
अफ़सोस इस बात का है कि इन खिलाडियों को सरकार इतना सर पर चढ़ा देती हैं की उसके बाद ये अपने आपको सबसे सुपीरियर समझते हैं। इनके अंदर जो सेंस ऑफ़ एंटाइटलमेंट की भावना होती है न कि हमें कोई कैसे चुनौती दे सकता है, कोई हमसे कैसे आगे बढ़ सकता है वो इनकी मानसिकता को दर्शाता है।
और एक बात आपको बता दूँ कि विपक्ष इसलिए परेशान या दुखी नहीं है कि विनेश को मैडल नहीं मिला या भारत का एक और मैडल पक्का नहीं हुआ वो इसलिए परेशान है कि जिस विनेश फोगाट के जरिये वो पीएम मोदी को अब तक घेर रही थी उसके मैडल जीतने पर ऐसे प्रचारित करती कि देखो देश की बेटी का मोदी को ये करारा जवाब है। मगर बेचारों के मंसूबों पर तेज़ाब उड़ेल दिया भाग्य ने। ऐसा नहीं कि हमें दुःख नहीं है कि विनेश को मैडल से वंचित होना पड़ा मगर वो एक खिलाडी हैं लेकिन देश से बड़ी नहीं है। और कहीं न कहीं अपने कर्मों का फल तो भुगतना पड़ता है अगर आप आने वाले नए खिलाडियों को आगे बढ़ने से रोकेंगे तो आपको ईश्वरीय न्याय के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा।
देश में उनके अलावा भी बहुत प्रतिभाशाली खिलाडी हैं जिहोने अपनी मेहनत, कठिन प्रयास और तैयारी से भारत के लिए पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया है। मगर ये कहाँ तक उचित है कि एक खिलाडी के पीछे पूरी सरकार, मीडिया, विपक्ष नतमस्तक हो जाए? क्या केवल खिलाडी ही हैं जो देश का मान बढ़ाते हैं? और दूसरी बात है कि पदक जीतने के बाद सरकार इन खिलाडियों को इतने इनाम और सुविधाएं देती है कि उनको ज़िन्दगी भर कमाने की कोई ज़रूरत नहीं है। क्या सरकारों ने खिलाडियों के अलावा किसी वैज्ञानिक, किसी सेना के सिपाही अधिकारी या सुरक्षा व्यवस्था में लगे हुए व्यक्तियों को ऐसे सुविधा दी है। इंटेलिजेंस ब्यूरो और भारत की दूसरी खूफिया एजेंसी में देश भक्ति को अपना पहला कर्त्तव्य समझने वाले सिक्योरिटी एजेंट्स, रॉ एजेंट्स जो अपनी जान की परवाह किए बिना देश के लिए दुसरे देशों में और कई सीक्रेट ऑपरेशन में काम करते हैं, क्या उनके परिवारों के लिए सरकार ने कभी इतना प्रोत्साहन और सुविधाएँ दी। सरकार भी पॉपुलर कल्चर से ग्रस्त है क्योंकि खिलाड़ियों और कलाकारों के पीछे तो मीडिया और लाइम लाइट के बंधुआ मजदूर लगे रहते हैं कि कोई मसाला मिले, कोई खबर मिले जो ब्रेकिंग न्यूज़ की टीआरपी के मानदंडों पर खरी उतरे। कभी कभी तो लगता है सभी सरकारें टीआरपी के लिए ही काम कर रही है। हालाँकि यहाँ सरकारों के सन्दर्भ में टीआरपी का अर्थ है वोट बैंक। जितने करोड़ों रुपये और सुविधाएँ सरकार ओलिंपिक विजेताओं देती है क्या कभो उन्होंने सोचा कि ऐसा कुछ राशि उन परिवारों को भी आवंटित की जाए जो समाज में सच में वंचित हैं। अरे आप धन आवंटित मत कीजिए आप उन्हें जीवन में अपना विकास और प्रगति करने का अवसर तो दीजिए। संभवतः सभी को मेरी बात बुरी लग रही होगी और बहुत कम ही लोग बात की गहराई और सच्चाई जान रहे होंगे मगर ये कहना बहुत ज़रूरी है। धारा के साथ बहना थोड़ा सरल है मगर धारा की विपरीत और सच्चाई पर अडिग रहना 1000 गुना कठिन है। निडरता से बात कहने से ही सच्चाई मजबूत होती है।
खिलाडियों का सम्मान करना बहुत अच्छी बात है, मगर क्या सरकारों के ये नहीं सोचना चाहिए कि इन खिलाडियों के अलावा इस देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जो भारत की प्रगति और सम्मान के लिए दिन रात संघर्ष कर रहे हैं निस्वार्थ भाव से, उनका भी सम्मान करना चाहिए । पीएम मोदी को तानाशाह बताने वाले और पोलिटिकल दुश्मनी निभाने वाले जो तथाकथित आरोप है वो इसी बात से धराशायी हो जाती है कि जिस खिलाडी ने खेल छोड़कर राजनीतिक दलों की पिट्ठू बनकर प्रोपेगंडा फैलाया और अपने जैसे और खिलाडियों के राह में अप्रत्यक्ष रूप से रोड़ा लगाया , उसके अयोग्य होने पर भी पीएम ने उसका हौसला बढ़ाया और चैम्पियनो का चैंपियन की उपाधि दी. खैर वो देश के राष्ट्राध्यक्ष हैं तो उनका खिलाडियों का हौसला बढ़ाना यह दर्शाता है कि वो अपने मन में किसी तरह का द्वेष भाव नहीं रखते अपने विरोधी के लिए, बशर्ते उक्त व्यक्ति किसी देश विरोधी गतिविधि में सम्मिलित न हो
ओलिंपिक में मैडल जीतने के बाद खिलाडियों को करोड़ों के इनाम दिए जाते हैं, उनके देश अपने माथे पर बिठाता है, मगर क्या ये सम्मान देश के किसी और नागरिक जिसने अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया हो उसको मिलता है । हरियाणा की सरकार ने तो कमाल ही कर दिया, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी घोषणा की कि विनेश फोगट को अयोग्य घोषित किए जाने के बावजूद रजत पदक विजेता के सभी लाभ दिए जाएंगे। उन्होंने कहा, “न केवल हरियाणा, बल्कि पूरे देश को हमारी बेटी विनेश पर गर्व है। कुछ समस्याएं उत्पन्न हुईं, जिसके कारण उसे अयोग्य घोषित किया गया।”
मतलब इसको क्या कहेंगे, हम ये नहीं कह रहे कि आप उनका सम्मान मत करो मगर क्या यही मानदंड अन्य जितने खिलाडी ओलिंपिक में गए और जिन्होंने भरसक प्रयास किया अपना अच्छा प्रदर्शन करने मगर पदक नहीं जीत पाए, उनके लिए भी लागू होगा। सत्य को बिना लाग लपेट, निडरता और निष्पक्षता से कहना ज़रूरी है चाहे फिर इसके लिए विरोध या आलोचना क्यों न सहनी पड़े।