बसंत का वो मौसम मिथ्या है

बसंत का वो मौसम मिथ्या है

बचपन में कभी सुना था कि वसंत का मौसम जो है मौसमों का राजा है, कहते भी हैं ऋतुराज वसंत। मगर अभी ज़िन्दगी ने ऐसे ऐसे रंग दिखाए हैं कि अब मौसम कौन सा गुज़र रहा है समझ नहीं आता। हाँ गर्मी में हमारा तेल ज़रूर निकल जाता है। दफ्तर से निकलते समय जब ऑटो पकड़ते हैं तो यही दुआ करते हैं कि हे भगवान् रोड पर ट्रैफिक ना मिले और जब मिलता है तो क्या कहूं मन होता है दो चार क्रोध की वाणियों से सबकी तबीयत हरी कर दूँ। लेकिन फिर तभी समझ आता है कि ये अपने हाथ में नहीं है तो काहे को इतनी मगजमारी करूँ।

मगर सही बताऊं जब ऑटो बैठकर मई और जून की गर्मी में रात को ऑफिस से घर को निकलते हुए ट्रैफिक होता है तो बड़ी कोफ़्त होती है। कुछ कर तो नहीं सकते बस अपनी ज़ुल्फ़ों और बालों से टपकते पसीने को पोंछने के लिए कभी कभी मैं जेब से रुमाल निकालने का भी कष्ट नहीं करता। सोचता हूँ जैसे तैसे तो ऑटो मिला है कुछ देर के लिए एडजस्ट कर लेता हूँ , मगर यकीन मानो वो adjustment ऐसा होता है कि उसी टाइम मन करता है कि जल्दी से ये सफर ख़तम हो और मैं अपने घर पहुंचूं। घर पहुंचते ही सबसे पहली ज़द्दोज़हद होती है कि ऑफिस के बैग को सही जगह रखो। जल्दी से जूते और जुराब को अपनी जगह पर रख कर फ्रेश होने का एक टास्क है जो नहीं करता तो लगता है कैसी गलीच हरकत है मेरी। खैर ये तो हो गयी है हर दिन की बात, अब बात करता हूँ कि जीवन के ऐसे मुद्दों की जो कभी कभी दिमाग को घनचक्कर बना देते हैं।

सच की बातें लोग बहुत करते हैं लेकिन सच कितना बोलते हैं और सच बोलने से ज़्यादा सच कितना निभाते हैं इसका कोई प्रतिशत निकाला जाएगा तो 1 प्रतिशत से भी कम मिलेगा। मैंने अपने अनुभव से देखा है कि घरों और दफ्तरों में कैसे राजनीती होती है (यह एक बहुत बड़ी विडंबना है कि राजनीती शब्द को इतना विकृत कर दिया गया है कि इसको हमेशा नेगेटिव के सन्दर्भ में देखा जाता है, अभी मुझे ये शब्द इसलिए बोलना पड़ रहा है क्योंकि पाठको को समझने में आसानी हो।)

अतुल सुभाष की आत्महत्या, न्याय व्यवस्था की निर्दयी मानसिकता का परिणाम है

अब बात घर की कर ली जाए , समाज का एक कड़वा सच बताऊँ आपको, बुरा तो नहीं लगेगा, खैर बुरा भी लगेगा तो मैं बोलने से फिर भी पीछे नहीं हटूंगा। हमें रोज़ ये आधा झूठ परोसा जाता है कि पुरुष प्रधान समाज है, जो कि कुछ हद तक सही भी है मगर कोई भी पुरुष की पीड़ा को नहीं समझता। यहाँ मैं पुरुषों की बात कर रहा हूँ इसका यह अर्थ नहीं कि मैं महिलाओं के सम्मान, उनके त्याग, उनकी परेशानियों और उनकी रोज़मर्रा की विवशता को नहीं समझता। मगर स्त्रियों को फिर भी कहीं न कहीं से समर्थन मिल जाता है, वो अलग बात है कि कई लोगों का समर्थन के पीछे के इरादे खतरनाक और घटिया होते हैं। मगर क्या आपने कभी सोचा है की मर्द के अंदर की जो कश्मकश है उसका समाधान कौन करेगा?

आपने अतुल सुभाष की आत्महत्या वाला वाला केस तो सुना ही होगा। जब अतुल सुभाष जो एक इंजीनियर थे, ने आत्महत्या की तो पूरे देश में वो चर्चा का विषय बना। कुछ दिन के लिए मीडिया और समाचार पत्रों को बहुत अच्छा मसाला मिला। न्यूज़ डिबेट में भी मुद्दा उठाया गया लेकिन इसलिए नहीं कि अतुल सुभाष के प्रति कोई संवेदना या कोई सहानुभूति हो बल्कि इसलिए कि उसमे TRP मिले और उस बहाने टीवी न्यूज़ की viewership बढे, न्यूज़ चैनलों को विज्ञापन मिले और उनका बाज़ार फलता फूलता रहे।

अतुल सुभाष के बारे अगर जानकारी बताई जाए तो वो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे और Artificial intelligence के एक्सपर्ट थे। वो बंगलुरु में रहते थे। आत्महत्या जैसा कदम उठाने से पहले उन्होंने बाकायदा एक वीडियो बनाया और एक पूरा लेख लिखा कि जिसमे उन्होंने घटिया, भेदभाव पूर्ण और निर्दयी न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाये थे और आरोप लगाए थे कि न्याय व्यवस्था पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है।

अपने 24 पन्ने के सुसाइड नोट में अतुल सुभाष ने भारतीय न्याय व्यवस्था के ऊपर कई गंभीर आरोप और सवाल उठाये। एक लम्बा सुसाइड नोट के अलावा अतुल ने एक घंटे के करीब एक वीडियो बनाया और उसमे अपनी पत्नी, ससुराल वालों और फॅमिली कोर्ट की जज रीता कौशिक पर गंभीर आरोप लगाए जिसके मुताबिक जज रीता कौशिक ने 5 लाख रुपये रिश्वत की डिमांड की अगर अतुल को फैसला अपने हक़ में चाहिए तो। अतुल सुभाष ने ये भी दावा किया था कि 2022 में कोर्ट के एक क्लर्क उनसे 3 लाख रुपयों की डिमांड की ताकि वो कोर्ट की सुनवाई को जल्दी से schedule करवा सके। अतुल ने पत्नी और उसके परिवार वालों पर पैसे मांगने और अपने बेटे से न मिलने देने के भी आरोप लगाए।

अतुल सुभाष का अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया के साथ बच्चे की कस्टडी, तलाक और एलिमनी को लेकर विवाद था। उनकी शादी साल 2019 में हुई थी , लेकिन पिछले तीन सालों से दोनों दम्पति अलग अलग रहे थे। अतुल सुभाष के एक 4 साल का बेटा भी है। यहाँ हमने अतुल सुभाष के केस के बारे में इसलिए बताया कि कितना हंगामा हुआ, दो चार दिन का शोर हुआ, लेकिन न हमारी मीडिया सुधरी और न ही हमारी न्याय व्यस्था। कहने को निकिता सिंघानिया और उनके परिवार को गिरफ्तार किया गया लेकिन दिसंबर 2024 में उन्हें कोर्ट से ज़मानत भी मिल गयी।

अतुल सुभाष मूल रूप से बिहार के निवासी थे और अपनी पत्नी निकिता सिंघानिया से तलाक और बच्चे की कस्टडी को लेकर विवाद में थे। यह दंपति वर्ष 2019 में विवाहबंधन में बंधा था, लेकिन पिछले तीन वर्षों से अलग रह रहे थे। उनका एक चार साल का बेटा भी है। तो कहाँ है वो लड़को की दरिंदगी पर पूरे पुरुष समाज को कटघरे में खड़ा करने वाला समाज, मीडिया और लोग। क्या कभी किसी के मुँह से आपने निकिता सिंघानिया जैसे निर्दयी, और धूर्त महिला के बारे में कुछ विरोध करते सुना, नहीं सुनेंगे क्यों? क्योंकि वहां पर आप पर ठप्पा लगा दिया जाएगा कि आप स्त्री विरोधी हो आप मर्दों का साथ देते हो और स्त्रियां तो गलती कर ही नहीं सकती है न। और यहाँ निकिता के साथ साथ जो वो जज रीता कौशिक हैं अगर उन्होंने अतुल सुभाष के पक्षपात पूर्ण व्यवहार किया तो वो भी दोषी हैं।

रोहतक की मर्दानी बहने निकली झूठी और निर्दोष लड़को झूठे आरोप में फ़साने वाली

एक और मामला मैं यहाँ पर बताना चाहूंगा जब हमारी देश की अक्लमंद मीडिया ने बिना सोचे समझे अपने आपको महिला सशक्तिकरण का झंडाबरदार बताने के लिए दो लड़कियों को हीरो बना दिया। मैं बात कर रहा हूँ रोहतक की दो बहनो पूजा और आरती के बारे में और ये प्रकरण नवंबर 2014 का है। इन दोनों लड़कियों ने हरियाणा रोडवेज की बस में तीन लड़कों की जमकर पिटाई की थी और उन पर इलज़ाम लगाया था कि वो तीन लड़के उन्हें छेड़ रहे थे। इस पूरी घटना का वीडियो पूरे देश में वायरल हुआ। और जैसा कि हमारी मीडिया को बहुत जल्दी होती है TRP बढ़ाने की और किसी भी मुद्दों को बढ़ा चढ़ा कर दिखा कर किसी को हीरो बनाकर उसको सर माथे पर चढाने की और किसी को इतना बेइज़्ज़त कर दो कि उसकी ज़िन्दगी ख़राब हो जाए। सोशल मीडिया और मीडिया उन तीनो लड़कों जिनका नाम मोहित, दीपक और कुलदीप है उनको दरिंदा, अपराधी और छेड़ छाड़ करने वाले गुंडे के रूप में प्रस्तुत किया। ये खबर जैसे ही फैली , उन दोनों बहनो को इन्साफ दिलाने के एक स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (SIT) को बनाया गया। मगर कुछ समय बाद ही इस घटना का सच सामने आया। बहुत से बस यात्रियों ने उन युवकों को निर्दोष बताते हुए उनके समर्थन में बयान देना शुरू कर दिया, जिस से इन दोनों बहनो की जो इन्होने कहानी बताई थी उसका सच्चाई पर शक होने लगा।

इस मामले में अदालत की तरफ से जो पहला फैसला मार्च 2017 में आया जिसमे ये कहा गया की तीनो युवकों के विरुद्ध जो भी आरोप लगाए थे लड़कियों ने वो साबित नहीं हुए हैं। क्योंकि लड़कियां अपने statement में यह बताने में विफल रही कि झगड़ा सीट विवाद को लेकर हुआ था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पॉलीग्राफ टेस्ट (Lie Detector Test) में तीनो युवकों के उत्तर सटीक पाए गए जबकि दोनों बहनो यानि पूजा और आरती के जवाब भ्रामक, अस्पष्ट और झूठे पाए गए।

इस मामले में सितम्बर 2018 में session कोर्ट ने भी निचली अदालत के वर्डिक्ट को वैसे ही रखा और तीनो युवको को निरपराध बताया। इसके साथ ही जब उन लड़कियों को झूठे केस में फ़साने के कारण सजा देने की मांग हुई , तो अदालत ने इसे यह कह कर ख़ारिज कर दिया कि लड़कियों ने भी इस पूरे प्रकरण के दौरान काफी कुछ झेला है , तो बताएं आखिर ये कहाँ का इन्साफ है। सोशल मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया लड़को की छवि को नुक्सान पहुँचाने और उनके प्रतिष्ठा में भट्टा लगाने के कारण आज भी समाज में उनकी ज़िन्दगी पटरी पर नहीं आई। आज भी तीनो युवक झूठे आरोपों के कारण मानसिक पीड़ा झेल रहे हैं।

जसलीन कौर और सरवजीत का कथित छेड़खानी का मामला

एक और घटना इस बात की पुष्टि करती है कि मीडिया ट्रायल करना मीडिया का सबसे अच्छा हथियार है और खासकर जब आरोपी लड़का हो तो छेड़छाड़ का केस हो तो बिना सच्चाई जाने किसी को ‘दिल्ली का दरिंदा’ की भी उपाधि दी जा सकती है. जी हाँ हम बात कर रहे हैं सरवजीत सिंह और जसलीन कौर केस की जिसमे जसलीन कौर नाम की लड़की ने जो कि सेंट स्टेफन कॉलेज की पूर्व छात्रा थी, ने सरवजीत सिंह पर छेड़ छाड़ करने और विकृत मानसिकता का आरोप लगाया। प्रसिद्द मीडिया वेबसाइट ने बिना सोचे समझे और किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा की परवाह न करते हुए सरवजीत की तस्वीर छाप दी और उसकी छवि को धूमिल किया। जो घटना जसलीन ने बताई थी उसको सिद्ध करने के लिए उसके पास कोई सबूत नहीं थे क्योंकि एक फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर अपलोड करने से ये साबित नहीं हुआ कि सरवजीत ने किसी भी भी प्रकार की अभद्रता और छेड़छाड़ की हो। बल्कि सर्वजीत को समाज से कितनी प्रताड़ना झेलनी पड़ी, उनको टाइम्स नाउ जो कि एक प्रतिष्ठित न्यूज़ चैनल है उसने दिल्ली का दरिंदा के नाम से सम्बोधित किया। जसलीन के आरोप के कुछ घंटे बाद ही पुलिस ने सरवजीत को गिरफ्तार कर लिया था। 2016 News Broadcasting Standards Authority (NBSA) ने टाइम्स नाउ को सरवजीत से माफ़ी मांगने को कहा। मामला जब दिल्ली की कोर्ट में गया और एक भी सुनवाई में जसलीन कौर ने अदालत में अपनी गवाही नहीं दी और न ही उसने अदालत के किसी समन को माना। उसके परिवार से पूछने पर उसके पिता ने बताया कि जसलीन अब कनाडा जा चुकी है अपनी आगे की पढाई के लिए लेकिन शर्म उनको आई नहीं कि एक झूठे स्टेटमेंट ने एक निर्दोष व्यक्ति की छवि की बर्बाद कर दिया और उसमे भी कोढ में ज़हर का काम किया अदालत के उस फैसले में की जब उसने कहा जसलीन की खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले सकते हैं।

ये तो बस कुछ गिने चुने केस हैं जो हमने बताएं ऐसे हज़ारों लाखों झूठे केस पुरुष समाज आज भी झेल रहा है, लेकिन उसके बारे में कोई बात नहीं करेगा, अगर कोई करेगा तो उसको नारी विरोधी या फिर Male chauvinist कहा जाएगा तो कहाँ है तथा कथित पुरुष प्रधान समाज, आखिर कौन सा बसंत आया है पुरूषों के जीवन में, बसंत का वो मौसम सच में मिथ्या ही है।

~राजेश बलूनी प्रतिबिंब

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