मेरे स्वर्गवासी पापा

मेरे स्वर्गवासी पापा

आपकी बहुत याद आती है। हमेशा लगता है कि कहीं गए हैं, अभी लौट आएंगे। हर पल, हर क्षण आपकी कमी महसूस होती है। एक दिन सबको जाना है, लेकिन आपका यूं असमय चले जाना दिल को बहुत दुख देता है। काश! आप कम से कम 10 साल और हमारे बीच रहते। कितने सारे अरमान थे, जो अधूरे रह गए।

सोचा था, मोतिहारी में जब अपना घर बनेगा, तो आपके हाथों से गृह प्रवेश करवाऊंगा। गांव का घर, खलिहान – सब आपकी उपस्थिति में बनवाना था। जब भी नई गाड़ी लूंगा, सबसे पहले आपको आगे की सीट पर बैठाऊंगा, और ममहर, मौसी के यहाँ और सभी बहनों के यहाँ आपको घुमाऊंगा। मैं रात-रात भर काम करता ताकि जल्दी-जल्दी सारे काम पूरे कर सकूं और आपको दिखा सकूं। फिर कुछ वर्षों में दिल्ली छोड़कर सदा के लिए आपकी सेवा में गांव आ जाऊं – यही सपना था। लेकिन ये सब अब अधूरा रह गया।

मेरे पापा का जीवन सेवा भाव में बीता। कोई भी भूखा-प्यासा उनके पास से नहीं लौटता था। गांव के सब्जीवाले, फलवाले, फेरीवाले – सबके लिए वो ग्राहक नहीं, परिवार जैसे थे। अपने पेड़ पर लगे आम होते हुए भी वो दूसरों से खरीदते, अपने खेतों में सब्जियाँ होते हुए भी दूसरों से खरीदते ताकि उनका व्यवसाय बना रहे।

उन्होंने जो आम, शीशम, सेमर, केला और गूलर के पेड़ लगाए, वो आज भी उनकी उपस्थिति का प्रमाण हैं। मेरी हर सफलता पर वो चुपचाप खुश होते। मां से मेरी बातों का जिक्र करते रहते। अब ये सब छूट गया है।

Mango garden

लोग कहते हैं पापा मेरे ‘अंशी’ थे – शायद सच है। जाते-जाते भी अपने हिस्से की नौकरी परिवार के लिए छोड़ गए।

पापा के रहते कभी घर की चिंता नहीं रही। मैं बेफिक्र होकर परदेस में मेहनत करता रहा क्योंकि जानता था, घर की जिम्मेदारी वो संभाल लेंगे। मेरी तरक्की में उनका बड़ा योगदान था। कभी घर, न्योता, रिश्तेदारी या खेती-बाड़ी की फिक्र नहीं करनी पड़ी।

पापा का जन्म बाबा-दादी की शादी के 14 साल बाद हुआ था। वो परिवार में सबसे लाडले थे। जीवन भर राजाओं की तरह जिए और जाते-जाते भी किसी को सेवा का अवसर नहीं दिया।

मैं हमेशा सोचता था कि कुछ साल बाद गांव जाकर उनकी और मां की सेवा करूंगा। मां अब वृद्ध हो रही हैं। सोचा था कि जल्दी-जल्दी बाकी काम निपटा के जीवन के अगले चरण में माता-पिता की सेवा समर्पित करूं – लेकिन ईश्वर ने वह अवसर नहीं दिया।

पापा के बिना जीवन कैसे बीतेगा, यह सोचकर ही भय लगता है। उनके जाने के बाद मां की आंखों में लगातार आंसू रहते हैं। वो दिनभर उनकी सेवा में लगी रहती थीं – तरह-तरह के पकवान बनाना, डाकघर में आए लोगों के लिए चाय-नाश्ते का प्रबंध करना, पापा की सेहत का ध्यान रखना, समय-समय पर दवाइयां देना – यही उनकी दिनचर्या थी। अब सब बदल गया है।

Papa

काश! एक बार पापा फिर लौट आते, तो हम उन्हें दिखा पाते कि सेवा क्या होती है। दिन-रात मेहनत करके, हर खुशी उनके चरणों में समर्पित कर देते।

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सांझी बात एक विमर्श बूटी है जीवन के विभिन्न आयामों और परिस्थितियों की। अवलोकन कीजिए, मंथन कीजिए और रस लीजिए वृहत्तर अनुभवों का अपने आस पास।

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