बेमज़ा
बेमज़ा हुआ तो बानगी भी देखों अब क्यों रास्तों से दिल उखड़ा हुआ है रत्तीभर
ये राहें अंजान नहीं है यूँ ही मै इसमें नजर बंद करके चलना चाहता हूँ
बदले है घर के परिवेश बढ़ रहे हर जगह है क्लेश हो रहा है क्यों
चल उस जगह जहाँ सपनो को आकार मिले यूँ घुटे हुए अरमानो को आवाज़ मिले
गौर भी करें तो किस किस पर करें सब यहां मगन हैं अपने ही हाल
सूखे हुए उजाले अब अँधेरे हो गए दीवारों पर रेंगती हुई ज़िंदगी की खातिर कुछ
दिल एक सुकून की तलाश में रहता है अपना हाल-ए-दिल सबसे कहता है पांव टिकते
टूटी हुई शाखें दरख़्त के मायने तलाशती हैं बिखरी हुई पत्तियां मिटटी के घरोंदे सजाती
इस छोर पर ज़िन्दगी खड़ी है कई इरादे दिल में लिए सुस्ती का कुछ ऐसा