दिल करता है खोजबीन कि कुछ मिल जाए
दिल करता है खोजबीन कि कुछ मिल जाए सुकून न सही मंजिल ही मिल जाए
दिल करता है खोजबीन कि कुछ मिल जाए सुकून न सही मंजिल ही मिल जाए
जुगनू हूं रात में गश्त लगाता हूं अपनी हैसियत के हिसाब से जगमगाता हूं मेरी
मैं झूठे आरोपों और बरगलाने के लिए आता हूँ मैं खानदानी डकैतों को किसान बताता
पेट की तड़प मिटाने को मैं घर से निकल आया लेकिन इस शहर का पानी
अपने हुनर और मेहनत की बदौलत सब कुछ पाउँगा एक दिन अपने इरादों में ज़रूर
सुन रहे हो तुम? उन सूखी पत्तियों की सरसराहट जो बसंती बयार का इंतज़ार करते
रब ने दिया है सबको बराबर मौका वो इंसान पर है कि कैसे ज़िन्दगी सँवारे
उसे सामने देखकर लफ़्ज़ रुक गए ख्वाबों में तो कितना बतियाते थे कभी गौर नहीं
होती है खामोशी जब खता अपनी हो इल्ज़ाम दूसरों पर हो तो हंगामा होता है