खुल रहे है दस्तावेज तो चिढ रहे हो
सांप से ही दोस्ती पाली थी हमने चांवल की बोरी में धंसकर मरोगे जिरह क्या
सांप से ही दोस्ती पाली थी हमने चांवल की बोरी में धंसकर मरोगे जिरह क्या
रोज़ देखता हूँ आसपास तो सवालों से भरे चेहरे परेशां करते हैं वही बेचैनी, वही
मेरा नूर जब भी मुझसे नाराज़ होता है, हमेशा मैं उसे मनाऊं यही सोचता है,
होश खो रहे हैं हम उनको कुछ फ़िक्र नहीं है क्या प्यार है ये, या
जिनके कदमों ने हिम्मत की है बढ़ने की फिर मंजिलों के निशान मिल ही जाते
दुनिया से लड़ता हूँ लेकिन, खुद के दिल को कैसे मनाऊं बेगानी रूखी रातों में,
प्यार में तेरे गजब हो गया मैं सिर्फ तेरी निगाहों में खो गया मुझसे न
प्यार की हद नहीं है, तुम इतना समझ लो कि मैंने दिल से किया और
कद्र कोई करता नहीं इन गजलों की यारों सब खिल्ली उड़ाने का जरिया समझते हैं