मिलता नहीं है यारों मंज़िल का निशां
मिलता नहीं है यारों मंज़िल का निशां कहाँ पर आसमान और ज़मीन होते हैं फुर्सत
मिलता नहीं है यारों मंज़िल का निशां कहाँ पर आसमान और ज़मीन होते हैं फुर्सत
अपनी यादों का क्या करें साहब मुझे सब कुछ पुराना याद है दीवारों से उड़ती
चिंगारी तभी सुलगती है जब हवा का साथ हो आग तभी लगती है जब धुआँ
किसे शौक था गाँव से बिछड़ने का बस रोटी की लाचारी थी जो शहर आ
ये सांस का मुकद्दर भी कहां तक रहेगा वहीं, जहां धड़कनों का सैलाब बहेगा उनको
जिंदगी पेचीदा है, शहर बज़्म से सजा है मेरे रुआब में कोई गर्द सा सटा
कभी अपनी धुन में कभी बेपरवाह रहता हूं मैं परिंदों सा उड़ने का हौसला रखता
दिलासा क्या दूँ दिल को, ये भटक रहा है किसी और की सरपरस्ती में उछल
शरीर थक गया, वहम का आगोश है और लोग कहते हैं जिंदगी में जोश है
धड़कने बयां करती है ज़िन्दगी की किश्तें सांसों का गुच्छा अब टूट रहा है आगजनी