क्या रखा है बाहर, सब अंदर ही तो है

Sirauna

क्या रखा है बाहर, सब अंदर ही तो है
सैलाब आ गया तो क्या हुआ, समंदर ही तो है

क्यों तकल्लुफ करते हो बैठे रहो आराम से
जिंदगी भी आखिर एक बवंडर ही तो है

लापरवाह तुम हो, हालात नहीं.. ये कभी सोचा है
ये वक्त भी बीत जाएगा, एक पल का मंजर ही तो है

कभी इधर घूमता है कभी उधर डोलता है
मन का कोई ठिकाना नहीं, ये बंदर ही तो है

क्या बादशाह, क्या फकीर सब रुह बन गए
जीत भी गया दुनिया तो क्या, सिकंदर ही तो है

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सांझी बात एक विमर्श बूटी है जीवन के विभिन्न आयामों और परिस्थितियों की। अवलोकन कीजिए, मंथन कीजिए और रस लीजिए वृहत्तर अनुभवों का अपने आस पास।

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