बचपन, मिट्टी और गाँव – हमारी विरासत जो धुंधली होती जा रही है
बच्चों की अच्छी पढ़ाई, बेहतर सुविधाओं और रोज़ी-रोज़गार के प्रति आसक्त होकर, गाँव अब शहरों
बच्चों की अच्छी पढ़ाई, बेहतर सुविधाओं और रोज़ी-रोज़गार के प्रति आसक्त होकर, गाँव अब शहरों
पिछले कुछ वर्षों में लोगों की व्यवहारिकता और सामाजिकता में जितनी तेजी से बदलाव आया
पुराने दिनों में जहाँ यादें बसती हैं, जहां अतीत की फुसफुसाहट हमेशा के लिए सरक
जीवन की भी क्या विडंबना है कि काम और रोजगार के लिए आदमी को अपनी
मेरी उम्र अमूमन 5 साल तो बढ़ ही गयी होगी क्योंकि छठ पूजा के अवसर
किसे शौक था गाँव से बिछड़ने का बस रोटी की लाचारी थी जो शहर आ
प्रत्येक व्यक्ति जब वो अपने बचपन को जी रहा होता है उस के लिए उमंग-उत्साह
सुन रहे हो तुम? उन सूखी पत्तियों की सरसराहट जो बसंती बयार का इंतज़ार करते
जिस व्यक्ति के अंदर दृढ़ इच्छा शक्ति पैदा हो जाती है वह कठिन से कठिन
साल 2021 आ चुका है…यह साल हम सबके लिए कैसा होगा यह भविष्य के गर्भ