बच्चों की अच्छी पढ़ाई, बेहतर सुविधाओं और रोज़ी-रोज़गार के प्रति आसक्त होकर, गाँव अब शहरों में बस गया है। महानगरों की चकाचौंध के पीछे भागती यह अंधी भीड़ अपनी जड़ों से कट चुकी है। नतीजतन, गाँव के अधिकतर आँगन सूने हो गए हैं। दालानों-खलिहानों में अब पहले जैसी रौनक नहीं दिखती। देर शाम की बैठकी में गूँजने वाले ठहाके अब केवल यादों में सिमटकर रह गए हैं।
छठ पूजा, होली, दीवाली या किसी भी बड़े त्यौहार के समय गाँव कुछ दिनों के लिए जी उठता है – अपनों की आवाजाही से घर-आँगन गुलज़ार हो जाते हैं। पर जैसे ही त्यौहार ख़त्म होता है, गाँव फिर से उसी वीरानगी को ओढ़ लेता है। यह भीड़ कब वापस गाँव की ओर लौटेगी, यह कोई नहीं जानता, लेकिन गाँव की यादें हर प्रवासी के दिल में धड़कती रहती हैं।
गाँव की हरियाली, पेड़ों की छाँव, नदी-नहर का कलकल बहता पानी, पंछियों का मधुर कलरव – सब आज भी मन को वहीं ले जाते हैं। मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी की आँच में पकी दाल-भात की खुशबू, खेतों की पगडंडियों पर बेफ़िक्र चलना, गर्मी की दोपहर में ट्यूबवेल के पानी में नहाना, हर शाम हाई स्कूल के मैदान में फुटबॉल और बैटबॉल खेलना, कछुआ नदी में नहाना, पके हुए आम या उसके टिकोलों की तलाश में आंधी-तूफ़ान के बाद फुलवारी में घूमना – ये सब सिर्फ़ यादें नहीं हैं, बल्कि हमारे भीतर रची-बसी एक पूरी दुनिया है।

स्कूल के मैदान में दोस्तों संग खेलते हुए जो हँसी-खुशी हम महसूस करते थे, वह मासूमियत शहर की भागदौड़ कभी लौटाकर नहीं दे सकती। समय का पहिया तेज़ी से घूमता गया और हम सब अपने-अपने रास्तों पर बिखरते चले गए। बचपन तो बहुत पीछे छूट गया, पर उससे जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात आज भी दिल में धड़कती है।
आज जब हम गाँव जाते हैं तो वह पुराना स्नेह, वह अपनापन, वह सहजता कम दिखाई देती है। घर तो वही खड़े हैं, लेकिन चौखटों पर पहले वाला इंतज़ार नज़र नहीं आता। गलियाँ वही हैं, मगर उनमें अब वह चहल-पहल नहीं रही। बदलाव ने बहुत कुछ बदल दिया है – और शायद हम भी बदल गए हैं।
लेकिन यह बदलाव अंतिम नहीं है। ज़रूरत है कि हम समय निकालें। कुछ पल अपने गाँव की मिट्टी में बिताएँ। गाँव के लोगों से मिलें, अपनेपन का हाथ बढ़ाएँ – ताकि गाँव फिर से जीवंत हो सके।
साल में कुछ दिन गाँव को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ। अपने बच्चों को गाँव दिखाएँ, अपनी संस्कृति, अपनी मिट्टी और अपनी जड़ों से परिचित कराएँ। क्योंकि गाँव सिर्फ़ एक जगह नहीं – हमारी पहचान है, हमारी विरासत है। अगर हम उसे समय नहीं देंगे, तो यह विरासत धीरे-धीरे खोती चली जाएगी।