दरख्तों का फूल पत्तियां गिराना बुरा लगता है
अपनों का नज़रें फिराना बुरा लगता है
जब होश में आओगे तब बात करेंगे
यूँ क़दमों का लड़खड़ाना बुरा लगता है
मज़ाक करने तक तो सब कुछ ठीक है
पर किसी का मज़ाक उड़ाना बुरा लगता है
कुछ मसले तन्हाई में निपटाए जाते हैं
हर बात की महफ़िल लगाना बुरा लगता है
कुछ सोचकर ही किसी ने अपनी बात तुमसे कही
सरेआम बाजार में बातें उछालना बुरा लगता है
यादें दिलों में सिमटकर कैद हो गई हैं
उनको आंसुओं में बहाना बुरा लगता है
रियासतों के रहनुमा नए नए दावे करते हैं
उनका यूँ आवाम को फंसाना बुरा लगता है
सच और ईमान तो बेशकीमती है यारों
उस पर भी ज़मीर बिक जाना बुरा लगता है
एक शाम भी अपने साथ अकेला नहीं बैठा
यूँ भीड़ पर तिलमिलाना बुरा लगता है
ज़ुल्फ़ें तो फिर भी सुलझ जाती है लेकिन
ज़िन्दगी का उलझ जाना बुरा लगता है
ज़रा तबीयत हुई कि उनसे हाल चाल पूछूं
उस पर भी उनका तेवर दिखाना बुरा लगता है
दूसरों की गलतियों पर बड़ी जल्दी भड़कते हो
खुद के सामने रखा आइना बुरा लगता है
भुला दो उस रास्ते को जहाँ जाना नहीं है
उन गलियों का याद आना बुरा लगता है
जिन्हे सलीका नहीं था उठने बैठने का
उनका हमें तमीज सिखाना बुरा लगता है
दिल में मक्कारी और चेहरे पर झूठी मुस्कान
यूँ हर बार मुखौटा लगाना बुरा लगता है
जो हमें नसीहत देने का स्वांग रचते हैं
उन्हें सच्चाई से रूबरू कराना बुरा लगता है
अपने जज़्बे को लगातार जीत मिलेगी
मगर उसमे अड़चने लगाना बुरा लगता है
शातिरों को पता नहीं वो गर्त में जा रहे हैं
उनको उनकी गलतियां बताना बुरा लगता है
तमाशा-ए-ज़िन्दगी में सभी खेल होते हैं
बस चालबाजों से टकराना बुरा लगता है
बहुत हमले किए उसने मेरा किरदार गिराने को
उस कमज़र्फ का नाम बताना बुरा लगता है
छोडो यार की दुनिया में सब अपने हिसाब से होगा
बस अपनी ज़िन्दगी संभालना अच्छा लगता है