कौन से शहर का तू बाशिंदा है
मेरे घर में तो आजकल दंगा है
बस भाषणों तक सीमित रहती है कार्यवाही
बाकी तो प्रशासन खोखला और नंगा है
चुनाव दर चुनाव जीत जाते हो सरकार
अपने सिपहसालार मरे तो भी चंगा है
जागो अपनी इस लंबी खामोश नींद से
हो रहा यहां पर मौत का धंधा है
कुछ मन के मैले हैं कुछ शरीर सड़ांध से भरा
दूषित मानसिकता है और प्रदूषित गंगा है
सितारों से किस्मत नहीं होती आदमी की
उसका जीवन तो जैसे पतंगा है
वक्त रहते वार करो, जुल्म का प्रतिकार करो
हर एक अत्याचारी यहां भ्रष्ट और गंदा है