रोज सुबह घर से बेमन निकलता हूं
गाड़ियों के धुएं और धूप में झुलसता हूं
कड़कड़ाती सर्दियों में बिना डरे चलता हूं
कितनी बरसाते हों फिर भी काम करता हूं
नौकरी के लिए खुद को मारना पड़ता है
अपनी खुशियों और इच्छाओं को टालना पड़ता है
तुम्हे क्या पता बेमर्जी का काम करने में कैसा लगता है
ये ऐसा ही है जैसे दिन निकलता है और सूरज ढलता है
क्या सिर्फ नौकरी करना और पैसे कमाना ही जिंदगी है
अगर यही जिंदगी है तो कैसी जिंदगी है
सपनो की बात मत करो वो अब नींद में भी नहीं आते
सोए रहते हैं हम सब और खुद को नहीं जगाते है
मैं आज़ादी चाहूं तो लोग पीछे खींचते हैं
मेरे फैसलों सुनकर अपने होंठ भींचते हैं
हर दिन इस नीरसता का जहर पीता हूं
मन भरा हुआ हैं समंदर से और बाहर से रीता हूं
जिम्मेदारियों का भार उठाते उठाते कमर टूट गई
अपने सफर की गाड़ी भी इसी तरह छूट गई
सभी को यहां पर गुलामी का शौक है
करते रहो आखिर सलामी का दौर है
ज़मीर भी पता नहीं कहां सड़ गल रहा है
ए दिल तू काहे फिर पचड़े में पड़ रहा है
बहरे लोग और अंधी दीवारें हैं
जिंदगी के बाड़े में कंटीली तारें हैं
आज़ादी का नाम लिया तो सजा होगी
मुंह खोलना भी अब यहां खता होगी
कितनी भी कोशिशें करो सांस भारी रहेगी
जब पहले से ही मरने की तैयारी रहेगी
बस खुद से उम्मीद का गुमान है
मैं साथ हूं खुद के बस इतना इत्मीनान है