गाँव: जहाँ जीवन सिर्फ बसता ही नहीं खिलखिलाता भी है
मेरी उम्र अमूमन 5 साल तो बढ़ ही गयी होगी क्योंकि छठ पूजा के अवसर
मेरी उम्र अमूमन 5 साल तो बढ़ ही गयी होगी क्योंकि छठ पूजा के अवसर
मिलता नहीं है यारों मंज़िल का निशां कहाँ पर आसमान और ज़मीन होते हैं फुर्सत
अपनी यादों का क्या करें साहब मुझे सब कुछ पुराना याद है दीवारों से उड़ती
चिंगारी तभी सुलगती है जब हवा का साथ हो आग तभी लगती है जब धुआँ
किसे शौक था गाँव से बिछड़ने का बस रोटी की लाचारी थी जो शहर आ
कहते हैं कि शर्म को अगर बेचकर पैसे मिले तो बेशर्म और ग़ैर ज़िम्मेदार व्यक्ति
प्रत्येक व्यक्ति जब वो अपने बचपन को जी रहा होता है उस के लिए उमंग-उत्साह
ये सांस का मुकद्दर भी कहां तक रहेगा वहीं, जहां धड़कनों का सैलाब बहेगा उनको
जिंदगी पेचीदा है, शहर बज़्म से सजा है मेरे रुआब में कोई गर्द सा सटा
कभी अपनी धुन में कभी बेपरवाह रहता हूं मैं परिंदों सा उड़ने का हौसला रखता