बिखरे पन्ने… भाग -1
एक स्याह को तरसते वो कुछ कह नहीं पाए कुछ सुर्ख लाली लगने को थी
एक स्याह को तरसते वो कुछ कह नहीं पाए कुछ सुर्ख लाली लगने को थी
श्याम को उसके कंपनी के बॉस ने आज अल्टीमेटम दे दिया था, कि उसके पास
अक्सर मेरे और मेरी पत्नी के बीच इस बात पर बहस हो जाती है कि
पृथ्वी के बारे में बहुत से ऐसे तथ्य है जो शायद हम में से अधिकतर
बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले का एक छोटा सा मनभावन गाँव सिरौना जहाँ ग्रामीण क्षेत्र
मैं टूट नहीं सकता घनघोर पीडाओं का जाल मुझे फँसा रहा है अथाह प्रसन्नता मेरे
मुझे इल्म नहीं है कि तू मुझसे नाराज़ है शायद तेरे गुस्से का यही आगाज़
वक़्त अपने तेवर दिखाने से कहाँ बाज़ आता है जब अच्छा हो तो अनजान भी