खाक बड़ा था ये समंदर भी
एक बूंद भी तिश्नगी इस से नहीं बुझी
बढ़ाए थे अपने कदम कि रास्ते मिलेंगे
पर जाने क्यों अपनी मंजिलें नहीं दिखीं
एक सांस बची है आखिरी वक्त के लिए
ख्वाहिश थी मेरी पर जिंदगी नहीं मिली
भूलते हैं हर पल को आजकल यारों
हमने अपने सिरहाने पर कोई याद नहीं रखी
घर की दीवारों से रेत और मिट्टी गिर रही है
गनीमत है कि कम से कम ईंटें तो नहीं गली
कहते थे लोग कि जद्दोजहद के बाद सुकून मिलता है
मुझे तो इसकी मिसाल कहीं नहीं मिली
खुदगर्ज होने के अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं
मेरे दर्द पर रोने वाली कोई आंखें नहीं मिली
इंतजार में था कि शायद जलजले के बाद आशियां बनेगा
मगर अश्कों की धार वाली नदी नहीं रुकी
गौर करता हूं खुद पर तो इत्मीनान होता है
मेरी शख्सियत में अभी तक मक्कारी नहीं घुली