इस छोर पर ज़िन्दगी खड़ी है
कई इरादे दिल में लिए
सुस्ती का कुछ ऐसा नशा है
कि बिस्तर से अभी नहीं उठे
आँखों में बेशर्मी का पर्दा डाला है
और सुने को अनसुना करते हैं
इसी तरह ज़िन्दगी को बिताया है
खाली मकान में पत्थर पड़े हैं
अब कौन सा तीर धनुष पर चढ़ेगा
बर्तन तो दाल का जल ही गया
खाने के लिए मिटटी के दो कौर हैं
उसी में सांसों का मुर्दा जलेगा
आकाश में घूमते खिलंदड़ तारे
बस अब चटकने ही वाले हैं
धरती के कितने बेचैन सहारे
कुछ मिनट में गिरने ही वाले हैं
किस तोप की बात करते हो
जिसके पहियों में जंग लग गया
खुरचने से भी मैल नहीं जाता
आँखों में इस तरह सफेदा जम गया
उटपटांग कहानी और फटी पुरानी यादें
मखमली ख्याल और सड़ा हुआ कम्बल
टूटी हुई कलम और बिखरी बरसातें
आजकल भैंस से छोटी है अकल
चोर खिड़की से बारिश आई
पूरी सफेदी धुल गयी ऐसे
पैरों में आलस से मोच आई
किताब की जिल्द उतरी हो जैसे
टेढ़ी तस्वीरों का शीशा टूटना
उसके अंदर का जज़्बात मरे
चढ़े हुए हारों का हार में बदलना
सूखी हुई राख फिर रेत में मिले
इसी फलसफे में उलझी पड़ी है
उस छोर पर ज़िन्दगी रुकी पड़ी है