मुझे सब कुछ पुराना याद है
अपनी यादों का क्या करें साहब मुझे सब कुछ पुराना याद है दीवारों से उड़ती
अपनी यादों का क्या करें साहब मुझे सब कुछ पुराना याद है दीवारों से उड़ती
चिंगारी तभी सुलगती है जब हवा का साथ हो आग तभी लगती है जब धुआँ
किसे शौक था गाँव से बिछड़ने का बस रोटी की लाचारी थी जो शहर आ
कहते हैं कि शर्म को अगर बेचकर पैसे मिले तो बेशर्म और ग़ैर ज़िम्मेदार व्यक्ति
प्रत्येक व्यक्ति जब वो अपने बचपन को जी रहा होता है उस के लिए उमंग-उत्साह