ये इश्क़ भी बड़ा अजीब है
ये इश्क़ भी बड़ा अजीब है जो दिल से दूर है उसके करीब है वो
ये इश्क़ भी बड़ा अजीब है जो दिल से दूर है उसके करीब है वो
आज का भारत जहाँ विश्व को रास्ता दिखा रहा है और नए – नए कीर्तिमान
मुकम्मल भी हुआ तो क्या हुआ ये इश्क़ है अपनी नादानी कहां छोड़ता है कभी
मेरी उम्र अमूमन 5 साल तो बढ़ ही गयी होगी क्योंकि छठ पूजा के अवसर
मिलता नहीं है यारों मंज़िल का निशां कहाँ पर आसमान और ज़मीन होते हैं फुर्सत
अपनी यादों का क्या करें साहब मुझे सब कुछ पुराना याद है दीवारों से उड़ती
चिंगारी तभी सुलगती है जब हवा का साथ हो आग तभी लगती है जब धुआँ
किसे शौक था गाँव से बिछड़ने का बस रोटी की लाचारी थी जो शहर आ