साँझ का एक टुकड़ा
टूटी हुई शाखें दरख़्त के मायने तलाशती हैं बिखरी हुई पत्तियां मिटटी के घरोंदे सजाती
टूटी हुई शाखें दरख़्त के मायने तलाशती हैं बिखरी हुई पत्तियां मिटटी के घरोंदे सजाती
इस छोर पर ज़िन्दगी खड़ी है कई इरादे दिल में लिए सुस्ती का कुछ ऐसा
पहले लगता था कि कोई नाराज़ है यकीन मानो अब कोई फर्क नहीं पड़ता। दिल
उठ! क्यों हो रहा है निराश अब मत हो तू इतना हताश जीवन अभी बहुत
राम मन में हैं मेरे राम जीवन हैं मेरे राम की महिमा निराली राम नस
मौत की दस्तक का ऐसा है आलम कि फूली हुई सांस का जायजा लिया जाए।