वामपंथ की मरणासन्न पत्रकारिता
पत्रकारिता में स्वयंभू शिखर पुरुष कहलाने हेतु रविश कुमार की मानसिकता एक ऐसे कुंठित व्यक्ति
पत्रकारिता में स्वयंभू शिखर पुरुष कहलाने हेतु रविश कुमार की मानसिकता एक ऐसे कुंठित व्यक्ति
कोई शिकन भी माथे पर ठहरती नहीं कभी तो कोई दाग दामन पर रहा होगा
मिरे तकिये मे कई रातें बिखरती हैं लब ग़ुलाम हैं और शिकायतें सुलगती है पूरे